Wednesday, February 9, 2022

क्यों लता मंगेशकर मांग में भरती थीं सिंदूर, तब्बसुम ने सुनाया वो पूरा किस्सा

40 के दशक की ऐक्ट्रेस तब्बसुम उन लकी सितारों में हैं, जिन्हें लता मंगेशकर के साथ केवल काम करने का मौका ही नहीं मिला बल्कि उन्हें बेहद करीब से जानना का भी मौका मिला। लता मंगेशकर की जिंदगी से जुड़े कुछ अनसुने किस्से के बारे में तब्बसुम ने सुनाया और बताया कि एक बार उन्होंने उनसे मांग में सिंदूर लगाने को लेकर सवाल पूछा था, जिसका जवाब भी उन्होंने दिया। नवभारतटाइम्स के रिपोर्ट्स संजय मिश्रा से हुई पूरी बातचीत कुछ इस तरह से है- लता जी के बारे में कुछ भी कहना सूरत को चिराग दिखाना है। जिंदगी में मुझे शब्दों की कमी कभी नहीं पड़ी, लेकिन लता जी के बारे में यदि कहना चाहें तो मुझे लगता है जितना भी लिटरेचर है, पूरी दुनिया में हर जबान में सभी हम जोड़ दें तो भी उनकी शख्सियत और उनकी पर्सनैलिटी के साथ हम पूरा इंसाफ नहीं कर पाएंगे। 'मैं अपना एक शेर सुनाना चाहती हूं- जो बीत गए हैं जो जमाने नहीं आते, आते हैं नए लोग, पुराने नहीं आते युग चले जाएंगे, कई पीढ़ियां आएंगी और चली जाएंगी, लेकिन लता जैसा न कोई था न कोई होगा। अब जहां तक संगीता का ताल्लुक है लोग सभी जानते हैं कि सरस्वती उनके गले में विराजमान थीं। सरस्वती देवी का वो रूप थीं। संगीत के बारे में क्या कहूं वो तो चारों तरफ हर मीडिया ये बातें कर रहे हैं, लेकिन मैं तुमसे कुछ ऐसी बातें करना चाहती हूं जो किसी को पता न हो जो सिर्फ मेरे और उनके बीच हुई हों। पहली चीज़ तो ये कि 40 के दशक के दौर में उन्होंने भी अपना फिल्मी सफर शुरू किया था। पहले वह मराठी फिल्मों में काम करती थीं, फिर मराठी फिल्मों में गाने गाए। उसके बाद वो हिन्दी फिल्मों में आईं। जब वो हिन्दी फिल्मों में आईं, खुशकिस्मती ये है कि मैं भी बहुत ही मशहूर चाइल्ड आर्टिस्ट थी, 40 के दौर में काफी शोहरत थी बेबी तब्बसुम को। एक फिल्म बन रही थी तब मेरे खयाल से 1949 में, उसके बाद लता जी की 'महल' आई। उस फिल्म में हिरोइन थीं सुरैया और हीरो थे रहमान और संगीतकार थे हुस्नलाल भगतराम। उस दौर में ऐसा नहीं थी कि आपका काम नहीं है तो आप जाइए, परिवार की तरह मिलकर जैसे खाना खाते हैं, वैसे ही सब मिलकर काम करते थे। यदि एक आर्टिस्ट शॉट दे रहा है तो ये नहीं कि कोई दूसरा आर्टिस्ट कहीं बाहर चला जाए और खा पीकर आए। उस जमाने में वैनिटी वैन तो थी नहीं। सब के सब वहीं मौजूद रहते थे। ऐसा लगता था एक घर के बड़े ड्राइंग रूम में हम सब बैठे हुए हैं और शूटिंग कर रहे हैं। एक गाना था उस फिल्म में बहुत मशहूर 'चुप चुप खड़े हो जरूर कोई बात है, पहली मुलाकात है ये पहली मुलाकात है। लता जी के साथ कोई और भी लड़की थी गाना गा रही थी, उसका नाम मुझे याद नहीं। सबको इन्वाइट किया गया था कि बड़ी होनहार यंग एज की लड़की आई है, लता मंगेशकर उसका नाम है और उसकी रिकॉर्डिंग हम कर रहे हैं तो आइए। गीता दत्त और शमशाद बेगम भी आई थीं और मैं भी थी। वो अच्छी सिंगर हैं ये सबको मालूम है, लेकिन वो इंसान कितनी महान थीं, उन्होंने गीता दत्त और शमशाद बेगम का पैर छूकर आशीर्वाद लिया। लता जी की मैं आभारी हूं, उन्होंने मेरे लिए गाने गाए, बचपन से लेकर बड़े होने तक उन्होंने मेरे लिए गाने गाए। बचपन का गाना मैं इसलिए याद रखती हूं क्योंकि उसने मेरे बचपन को अमर कर दिया। नौशाद साहब का संगीत था और फिल्म का नाम था दीदार, जो आई थी 1951 में। उस फिल्म में नरगिस जी के बचपन का रोल मैंने किया था और दिलीप कुमार के बचपन का रोल किया था परिक्षित साहनी यानी बलराज साहनी के बेटे ने। मेरे लिए आवाज दी है लता ने और परिक्षित के लिए आवाज दिया है शमशाद बेगम ने। गाने के बोल थे- बचपन के दिन भुला न देना, आज हंसे कल रुला न देना। इस गाने को 70 साल से अधिक हो गए हैं। एक बात तो सभी जानते हैं कि लता मंगेशकर श्रीमति नहीं थीं वो कुमारी थीं। वो छोटी से लेकर बड़ी होने तक वैसी ही रहीं, मैं एकदम छोटी, चिरकुट पटाखा बेबी से समझदार तबस्सुम बन गई थी। मुझे अफसोस है कि टेलिविजन पर मैं उनका इंटरव्यू नहीं ले पाई। लेकिन उनसे अक्सर बातें हुआ करती थी। कभी-कभी पार्टीज़ में मुलाकातें होती थी। एक दफे मैंने उनसे पूछ लिया कि लता दीदी मुझे बताइए न कि सारी दुनिया जानती है कि आप अनमैरिड हैं, आपने शादी नहीं की है तो आपके मांग में जो सिंदूर है ये किसके नाम का है। पहले तो वो मुस्कुराईं और फिर उन्होंने मेरे को एक चपत लगाई और कहा कि छोटी सी बेबी तब्बस्सुम जिसको मैं चॉकलेंटे खिलाती थी बचपन में आज इसकी हिम्मत देखो कि ये मुझसे मेरी जिंदगी का इतना गहरा और छिपा हुआ सवाल पूछ रही है। मुस्कुरा कर उन्होंने कहा- बेटा संगीत मेरा सबकुछ है।संगीत नहीं तो मैं भी नहीं। और ये मांग में जो सिंदूर मैं भरती हूं... लोग कहते हैं न कि पति परमेश्वर...तो मेरा तो परमेश्वर, भगवान, गॉड सबकुछ जो है वो संगीत ही है। उसी के नाम का सिंदूर भरती हूं मैं अपने मांग में।


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