निर्देशक गगनपुरी ने 'दूरदर्शन' के रूप में कॉमिडी और आधुनिक रिश्तों के ताने-बाने को दर्शाने के लिए जैसे मजेदार विषय को चुना तो सही, मगर कमजोर स्क्रीनप्ले और कहानी के कारण वे मजे को बरकरार नहीं रख पाए। वह चाहते तो इस विषय के साथ बहुत खूबसूरती से प्ले कर सकते थे। कहानी: घर में उस वक्त हंगामा मच जाता है, जब 30 सालों से कोमा में पड़ी दादी (डॉली अहलूवालिया) एक दिन पोते (शरद) के अश्लील साहित्य की नायिका विमला का नाम सुनकर कोमा से उठ खड़ी होती है। इतने सालों से कोमा में पड़ा रहने की जानकारी पाकर कोई सदमा ना लगे इसके डर से उनका बेटा सुनील (मनु ऋषि चड्ढा) और उसकी पत्नी प्रिया () उनके इर्द-गिर्द 90 के दशक का माहौल बनाते हैं। दिलचस्प बात यह है कि सुनील और प्रिया की शादी तलाक के कगार पर है। किशोर बेटा और बेटी सुनील के साथ ही रहते हैं, मगर वे दोनों भी आपसी मतभेद भुलाकर दादी की सेवा में जुट जाते हैं। अपने कमरे में ज्यादातर समय बिताने वाली दादी अपने जमाने वाले दूरदर्शन लगाने की बात करती हैं। दादी एक एक करके चित्रहार से लेकर दूसरे कार्यक्रम देखने की फरमाइश करती हैं। इसके चलते सभी मिलकर दादी के लिए खुद शूट करके उस जमाने के प्रोग्राम तैयार करते हैं। सिर्फ टीवी ही नहीं बल्कि उनके परिवार के लोगों को खुद को भी 30 साल पहले के जमाने के अनुसार ढलना पड़ता है। पोते -पोती को नौकर तो सुनील और प्रिया को स्कूल जानेवाले स्टूडेंट्स के रूप में ढलना पड़ता है। रिव्यू: निर्देशक गगनपुरी की कहानी के किरदार रोचक हैं, मगर उन्हें कहानी में विस्तार नहीं मिल पाता। निर्देशक चाहते तो 90 के दशक के माहौल को और ज्यादा कॉमिक ढंग से दर्शा सकते थे। सुनील और प्रिया को दादी जैसी तेज दिमागवाली महिला के सामने स्कूल गोइंग स्टूडेंट्स बनाकर पेश करनेवाली बात पचती नहीं। क्लाईमैक्स जल्दी में निपटा दिया गया, इसके बावजूद फिल्म में ऐसे कई दृश्य हैं, जो चेहरे पर मुस्कान लाते हैं। कुछ जज्बाती दृश्य भी हैं, जो दिल को छूते हैं। बेटे सुनील के रूप में मनु ऋषि चड्ढा ने बहुत ही बेहतरीन काम किया है। मां के लिए कुछ भी करने को तत्पर बेटे के रूप में वह कन्विंसिंग लगे हैं। दादी के रूप में डोली अहलूवलिया बेहद चार्मिंग रही हैं। माही ने अपनी भूमिका को अच्छा-खासा निभाया है। पोते के रूप में शरद राणा और पोती के किरदार में अर्चिता शर्मा ठीक-ठाक रहे हैं। राजेश शर्मा, सुप्रिया शुक्ला और महक मनवानी औसत रहे हैं। क्यों देखें: यह फिल्म आपसे रह भी जाए, तो कोई ग़म नहीं।
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