रेटिंग | 3.5/5 |
स्टारकास्ट | चिरंजीवी, अमिताभ बच्चन, विजय सेतुपति, सुदीप, नयनतारा, तमन्ना भाटिया |
निर्देशक | सुरेन्द्र रेड्डी |
निर्माता |
राम चरण |
म्यूजिक | अमित त्रिवेदी |
जॉनर | एपिक एक्शन |
अवधि | 171 मिनट |
बॉलीवुड डेस्क.तेलुगु फिल्मों के मेगास्टार चिरंजीवी की यह 151वीं फिल्म आजादी की पहली लड़ाई लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को सच्ची श्रद्धांजलि है। कलाकारों की फौज से लैस इस फिल्म में चिरंजीवी का वन मैन शो देखने को मिलता है। नायक नरसिम्हा रेड्डी के विराट व्यक्तित्व और वीरता को उन्होंने पर्दे पर बखूबी पेश किया है। डायरेक्टर सुरेन्द्र रेड्डी नेसमय, संसाधन और अनुशासित भाव से अपने किरदारों में रहे कलाकारों की मदद से एक उम्दा फिल्म बनाई है।
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फिल्म 1846 में सेट है। तब अंग्रेज दक्षिण भारत में अपनी जड़ें जमाने में लगे थे। उस राह में नरसिम्हा रेड्डी सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभर रहे थे। उनकी वीरता के आगे अंग्रेजों की एक नहींचल रही थी। हालांकि तब कई रियासतों का साथ नरसिम्हा रेड्डी को नहीं भी मिलता है। 300 अंग्रेजी तोपों के सामने तब नरसिम्हा की सेना चंद मुट्ठी भर किसान बनते हैं। चतुर युद्ध नीति से वे एक के बाद एक जंग जीतते जाते हैं। नरसिम्हा अंग्रेजों को देश की सरजमीं से अंग्रेजों को बेदखल करने की मुहिम में जुट जाते हैं। उसकी खातिर परिवार, प्यार, सुख चैन को त्यागकरने से लेकर कूटनीति का जो मुजाहिरा वे पेश करते हैं, वह मिसाल कायम करताहै।
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नरसिम्हा रेड्डी के बारे में इतिहास में कम जानकारी है। मगर फिल्म के राइटर पुरूचुरी ब्रदर्स ने कहानी में आंदोलनों की मजबूत नींव रखने के तरीके को बयान किया है, वह आज के शासकों के लिए ऐसी मिसाल है कि आंदोलनों का रास्ता जनता के दिलो-दिमाग से होकर जाता है। क्रांति बगैर जनता के बीच गए और उन्हें शामिल किए नहीं लाई जा सकती। इसके दुनिया में ढेर सारे उदाहरण रहे हैं, मगर आज के शासक या एक्टिविस्ट वह समझ नहीं पा रहे। लिहाजा मुद्दे विशेष पर जन-आंदोलन तो दूर जन-जागरूकता तक दूर की कौड़ी है। उनके लिए यह फिल्म एक बेहतरीन उदाहरण पेशकरती है।
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बहरहाल, दो घंटे 41 मिनट लंबी यह फिल्म कुछ मौकों को छोड़ तेज रफ्तार से चलती है। चिरंजीवी अपनी आंखों और बॉडी लैंग्वेज से फिल्म में छाए हुए हैं। 64 के होने के बावजूद उन्होंने बतौर नरसिम्हा रेड्डी एक्शन सीक्वेंसयुवा कलाकारों की भांति किए हैं। फिल्म पहले स्वतंत्रता संग्राम की कहानी है। संग्राम में शस्त्र के साथ-साथ शास्त्र यानी सोच-संवाद के तौर पर बखूबी पिरोए गए हैं। मनोज मुंतसिर और देविका बहुधनम ने सोचपरक डायलॉग कलाकारों को दिए हैं। चिरंजीवी को साथी कलाकारों में किच्चा सुदीप, तमन्ना भाटिया, रविकिशन, नयनतारा और बाकियों का सम्पूर्ण रूप से साथ मिला है। गुरू गोसाई वेन्नकन में अमिताभ बच्चन का कैमियो असरदार है।
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एक्शन इस फिल्म की रीढ़ है। वह मजबूत रहे, इसके लिए बाहुबली-2, कैप्टन मार्वल और ठग्स ऑफ हिंदोस्तान काएक्शन कोरियोग्राफ कर चुके ली ह्विटेकर की सेवाएं ली गई हैं। उनके साथ ग्रेग पॉवेल, राम लक्ष्मण और ए विजय जैसे स्टंट डायरेक्टर्स का काम रॉ, रियल और रस्टिक रहा। एक्शन को एंटी ग्रैविटी यानी हवा हवाई वाला नहीं होने दिया। जैसी आमतौर पर साउथ की कमर्शियल फिल्मों में हो जाता है। मनोरंजन और मैसेज का संतुलित मिश्रण इस फिल्म में है लेकिकुछ कलाकारों की लाउड एक्टिंग हालांकि अखरती है।
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