Tuesday, June 25, 2019

आपातकाल और किशोर कुमार की क्रांति का वह ऐतिहासिक किस्सा

आज से ठीक 44 साल पहले 25 जून, 1975 को देश में लगाया था और ने इसकी घोषणा करते हुए अपने रेडियो संदेश में के जरिए की थी। यह आपातकाल 21 महीनों तक यानी 21 मार्च, 1977 तक लागू रहा। इस दौरान बॉलिवुड के महान गायक तक की आवाज दबाने की भी कोशिश की गई थी। आइए, आपको यहां बताते हैं किशोर कुमार के उसी किस्से के बारे में। तब सत्ता की तानाशाही के खिलाफ किशोर कुमार ने अस्थाई ही सही पर खड़े होने का काम किया था। इंदिरा गांधी के करीबी वीसी शुक्ला के नेतृत्व में मंत्रालय चाहता था कि आपातकाल के बाद इंदिरा द्वारा लागू किए 20 सूत्रीय कार्यक्रम के रेडियो और टीवी पर प्रचार में बॉलिवुड मदद करे। उन्होंने इस लिहाज से बॉलिवुड के टॉप फिल्ममेकर्स से सम्पर्क साधा। तब के शासन ने अपने समर्थन में किशोर कुमार की लोकप्रिय आवाज की भी मदद चाही जो मुमकिन नहीं हो पाई। तब मुंबई में अप्रैल 1976 में बॉलिवुड के उस समय के सबसे बड़े निर्माता जीपी सिप्पी ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधिकारियों से कहा कि किशोर कुमार सहयोग के लिए तैयार नहीं, आपको उनसे सीधे बात करनी चाहिए। इसके बाद मंत्रालय के तत्कालीन जॉइंट सेक्रटरी सीबी जैन ने किशोर कुमार को फोन किया था। उन्होंने किशोर को सरकार के मंसूबों के बारे में बताया और कहा कि वह उनसे घर पर मुलाकात करना चाहते हैं। आपातकाल की जांच के लिए बने शाह कमिशन की रिपोर्ट के मुताबिक, किशोर ने कहा कि उनकी तबीयत ठीक नहीं, उन्हें हार्ट की समस्या है और डॉक्टर ने किसी से मिलने से मना किया है। किशोर ने साफ कर दिया कि वह किसी भी कीमत में रेडियो या टीवी के लिए नहीं गाएंगे। इससे अपमानित महसूस करते हुए जैन ने अपने तत्कालीन बॉस मंत्रालय के सेक्रटरी एसएसएच बर्नी को बताया कि किशोर का व्यवहार 'अशिष्ट' और 'मुंहफट' था। इसके बाद बर्नी ने मंत्री वीसी शुक्ला की अनुमति के बाद एक आदेश पास कर ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर न केवल किशोर के गाने चलाने पर रोक लगा दी बल्कि उनके ग्रामोफोन रिकॉर्ड्स की बिक्री को भी बंद कर दिया। जांच पैनल ने पाया कि सेक्रटरी का यह कदम केवल किशोर कुमार को ही पाठ पढ़ाने के उद्देश्य से नहीं बल्कि बॉलिवुड में दूसरों को भी सरकार के सामने मजबूर करने के लिए था। शाह कमिशन ने इसे एक प्रसिद्ध फिल्म आर्टिस्ट के खिलाफ प्रतिकार के रूप में देखा। आपातकाल के दौरान विरोधियों को कैद करने और आजादी पर अंकुश लगाने के सरकारी प्रयासों का असर हुआ। पैनल के मुताबिक 14 जुलाई 1976 को किशोर कुमार ने मंत्रालय को खत लिखकर कहा कि वह सहयोग करने के लिए तैयार हैं। किशोर कुमार की इस अंडरटेकिंग के बावजूद जैन ने लिखा कि हम बैन हटा सकते हैं, लेकिन उन्होंने अपने नोट में इस बात को भी दर्ज किया कि पहले यह देखा जाए कि किशोर कितना सहयोग कर रहे हैं। 29 अक्टूबर 1977 को टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले में जब शाह आयोग ने तत्कालीन मंत्री वीसी शुक्ला को समन किया तो उन्होंने कहा कि वह इस खेदजनक मामले की पूरी जिम्मेदारी लेते हैं और इसके लिए कोई भी अधिकारी दोषी नहीं है। यह मामला तब खत्म हुआ जब शाह आयोग बनाने वाली जनता पार्टी सरकार गिर गई। हालांकि किशोर कुमार की लोकप्रिय आवाज समय की परीक्षा में खरी उतरने में सफल रही।


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