Friday, October 1, 2021

अज्ज दिन चढ्या तेरे रंग वरगा, तू किसी रेल सी गुजरती है.. इरशाद कामिल हों या वरुण ग्रोवर सबने शुक्राना दिया.. मनोज मुंतशिर ने क्या किया?

पिछले दिनों के मशहूर गीतकार पर के आरोप लगे थे। दरअसल मनोज ने एक हिंदी में एक कविता लिखी थी। सोशल मीडिया पर एक बड़े तबके ने यह आरोप लगाया कि मनोज ने अंग्रेजी की एक कविता को हूबहू ट्रांसलेट करके इसे हिंदी में पब्लिश कर दिया। अब गीतकार ने 'नवभारत टाइम्स' के लिए लिखे एक लेख में मनोज मुंतशिर की तीखी आलोचना की है। दुष्यंत ने अपने लेख में लिखा है कि यह पहली बार नहीं है कि किसी कवि या गीतकार ने किसी ऑरिजनल रचना से प्रेरणा ली हो। इसके लिए उन्होंने कई उदाहरण दिए हैं। दुष्यंत ने लिखा, 'दोनों कवियों की पंक्तियों का वह साम्य प्रेरणा, संयोग या चूक का परिणाम हो सकता है। यह भी संभव है कि जैसा हर कवि के साथ होता है कि दूसरी भाषा की पसंदीदा कविता का अव्यावसायिक अनुवाद वे खुद के लिए करके अपनी डायरी में रख लेते हैं, क्योंकि भाषा और शब्द खुद के ही होते हैं तो अगर किसी जल्दबाजी में मूल कवि का नाम अनुवाद के साथ डायरी में दर्ज नहीं हो पाया तो कवि उसे अपनी रचना मान बैठता है, यह भी कवियोचित मानवीय भूल है।' दुष्यंत ने अपने लेख में उदाहरण देते हुए लिखा है कि गीतकार गुलजार हमेशा ही मिर्जा गालिब की रचनाओं से प्रेरणा लेते रहे हैं। गुलजार ने एक बार कहा था कि वह पूरी जिंदगी में गालिब की ही पेंशन लेते रहे हैं। दुष्यंत ने कहा कि जब भी कोई गीतकार किसी शायर या कवि की रचना से प्रेरित होता है तो वह उसे अपनी रचना में शामिल करने के लिए खुले तौर पर इजाजत मांगता है। इसके उदाहरण देते हुए दुष्यंत ने लिखा, 'गीतकार इरशाद कामिल ने जब ‘लव आजकल’ के लिए ‘अज्ज दिन चढ्या तेरे रंग वरगा’ को मुखड़ा बनाया, तो पंजाबी के मशहूर कवि शिव कुमार बटालवी को शुक्राना तो दिया ही, उनके वारिसों से इजाजत भी ली। वरुण ग्रोवर ने भी यह किया था, जब ‘मसान’ के लिए दुष्यंत कुमार के शेर ‘तू किसी रेल सी गुजरती है’ को मुखड़ा बनाया यानी इजाजत ली और शुक्राना दिया। यह लिहाज और आदर था।' दुष्यंत ने इसके लिए खुद का ही उदाहरण भी दिया है कि किस तरह एक बार वह खुद भी ट्रोल हो चुके हैं। उन्होंने लिखा, 'मैंने एक बार बशीर बद्र के खूबसूरत खयाल का नए शब्दों में बयान गफलत में कर दिया और सोशल मीडिया पर शेयर भी कर दिया। जब कुछ बहुत प्रिय मित्रों ने ही लगभग दुश्मन भाव में ट्रोल किया तो गलती का अहसास हुआ। खयाल बेशक हूबहू था। इस बात से इनकार भी नहीं कर सकता कि बशीर साहब को पढ़ता रहा हूं, प्रभावित भी रहा हूं, तुरंत माफी मांगकर पंक्तियों को विदड्रॉ किया। खयाल जेहन में अटक गया था, महीनों बाद इस तरह कागज पर निकला कि उसे अपना ही मान बैठा था।' दुष्यंत ने अपने लेख में लिखा है कि अक्सर कोई भी कवि किसी और के ख्याल से प्रेरित हो सकता है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है मगर अगर आपने किसी से प्रेरणा ली है तो कम से कम इजाजत लेने या क्रेडिट देने का फर्ज निभाया जाना चाहिए। दुष्यंत ने कहा, 'अच्‍छा कवि किसी खयाल से प्रेरित होकर, चुराकर फिर से बड़ी कविता खड़ी कर देता है और औसत कवि मूल कवि को शर्मसार कर सकता है।' मनोज मुंतशिर की बात की जाए तो सोशल मीडिया पर ट्रोल होने के बाद आज भी वह इस बात पर कायम हैं कि उन्होंने कविता चोरी नहीं की है। जबकि यह साफ है कि उनकी 2018 की कविता 'मुझे कॉल करना' साल 2007 में रॉवर्ट जे लेवरी की कविता Call Me का हूबहू हिंदी अनुवाद है। मनोज मुंतशिर ने इस मुद्दे पर अपना एक वीडियो भी शेयर किया और कहा कि उनके गाने कई कवियों की रचनाओं से प्रेरित रहे हैं और वह इसके लिए कोर्ट में भी अपनी सफाई दे सकते हैं।


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