बॉलीवुड डेस्क. न्यूयॉर्क में 11 महीनों तक इलाज कराने के बाद ऋषि कपूर अब इंडिया वापस आ चुके हैं और काम में भी जुट चुके हैं। इसके साथ ही उन्होंने यह खुशखबरी दी है कि जल्द ही उनकी और उनकी रियल लाइफ हीरोइन नीतू कपूर की जोड़ी एक बार फिर से बड़े परदे पर दिखाई देगी। उन्होंने यह जानकारी दैनिक भास्कर से एक्सक्लूसिव चर्चा करते हुए दी।
ऋषि इन दिनों वह 'द बॉडी' के प्रोमोशंस में जुटे हैं । एक दिसंबर से वे उस फिल्म की शूटिंग में जुटेंगे जो उनके न्यूयॉर्क जाने से पहले अधूरी रह गई थी। इस फिल्म का टाइटल भी अभी तय होना बाकी है। इसमें उनके साथ जूही चावला भी हैं। यह वही फिल्म है जिसके मेकर्स को ऋषि ने न्यूयॉर्क जाने से पहले पैसे वापस देने की पेशकश की थी मगर मेकर्स ने उनका इंतजार करना प्रिफर किया।
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अपनी पत्नी नीतू कपूर के साथ वे जिस फिल्म में साथ दिखेंगे वह चार साल पहले आई बंगाली फिल्म 'बेला शेषे' की रीमेक है। इस फिल्म के बारे में जानकारी देते हुए ऋषि ने कहा कि, इसकी कहानी बड़ी ही खूबसूरत है। शादी के चालीस साल गुजरने के बाद एक इंसान अपनी पत्नी से तलाक चाहता है। इसके पीछे क्या वजह है यह फिल्म उसी पर है। मैं लगातार इसी तरह की लीक से हटकर बनी फिल्मों की ही खोज में हूं।' ऋषि ने बताया कि जल्द ही इसकी शूटिंग शुरू की जाएगी।
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'मुझे काम करते रहना पसंद है। वक्त से सेट पर जाना और काम करते रहने में मुझे बहुत मजा आता है। मैं तो वक्त का पाबंद हूं। यह बात अलग है कि आज के स्टार्स समय से आते नहीं। एक हैं जिनका नाम नहीं लूंगा, वो तो कभी कॉल टाइम पर आते ही नहीं हैं। इत्तेफाक तो यह है कि उन महानुभाव की फिल्म हिट भी हो जाती हैं। मैं उस तरह का नहीं हूं। मैं हर तरह की फिल्में करने को तैयार हूं बस उस तरह ही फिल्में नहीं करता जहां पूरा दरोमदार मुझ पर हो। ऐसा इसलिए क्योंकि मुझे पता है कि सिर्फ मेरे नाम पर आज की तारीख में ऑडियंस नहीं आएगी। एक स्टार तो होना चाहिए फिल्म में। जैसे '102 नॉट आउट' में मेरे साथ अमिताभ बच्चन साहब थे। 'मुल्क' में तापसी पन्नू थीं। इसी तरह की फिल्में करना चाहता हूं। रेगुलर बाप या दादा के रोल मुझसे नहीं होंगे।'
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मुझे बहुत खुशी होती है, जब 'बाला' और 'विकी डोनर' जैसी फिल्में बनती हैं और सराही जाती हैं। हमारे जमाने में एक फेज तो ऐसा आ गया था, जहां हर तीसरी फिल्म में चार गाने, तीन रेप सीन होते थे। शुरू में हीरो-हीरोइन का बिछड़ना और अंत में मिलना स्क्रिप्ट में होता ही था। आज उस तरह की फिल्मों को तो ऑडियंस बिल्कुल खारिज कर देगी। यह बात भी है कि तब के दौर में अगर 'विकी डोनर' आई होती तो बैन कर दी जाती। मैं खुश हूं कि इस दौर की फिल्मों का भी हिस्सा बन रहा हूं। 'मुल्क' तो नेशनल अवॉर्ड में नॉमिनेट हो सकती थी, लेकिन मैंने सुना कि उसके डायरेक्टर अनुभव (सिन्हा) जरा सरकार विरोधी राय रखते हैं, शायद उसके चलते यह फिल्म नेशनल अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट नहीं हो पाई थी।
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