बॉलीवुड डेस्क (अमित कर्ण). आशुतोष गोवारीकर की फिल्म 'पानीपत' अर्जुन कपूर के कॅरिअर की पहली हिस्टॉरिकल जोनर फिल्म है। पानीपत की तीसरी लड़ाई पर बेस्ड इस फिल्म में अर्जुन, संजय दत्त से भिड़ते हुए नजर आएंगे। दोनों ने इसके लिए काफी मेहनत की है। खासतौर पर फिल्म के एक्शन सीन्स के दौरान जहां दोनों ने करीबन 20 से 25 किलो के जिरह बख्तर पहनकर शॉट दिए हैं, जिनमें उन्हें बड़ी तकलीफ होती थी। फिल्म में अर्जुन ने जो कॉस्ट्यूम पहना है, उसे चिल्टा हजार माशा कहते हैं जिसमें हजार छोटी-छोटी कीलें होती हैं।
हर शॉट के बाद उतार देते थे जिरह बख्तर
हर शॉट के कट होने के बाद दोनों अपने-अपने जिरह बख्तर निकाल लिया करते थे। ज्यादा देर उन्हें पहनकर वे खड़े नहीं हो सकते थे और न ही बैठ सकते थे। सबसे ज्यादा तकलीफ घोड़ों को होती थी। वह इसलिए कि जिरह बख्तर पहने कलाकारों का वजन बढ़ा हुआ रहता था। हालांकि इस तरह की हिस्टॉरिकल फिल्मों में यह सब होता ही है। ]
गोवारिकर ने क्यों चुनी पानीपत की तीसरी लड़ाई
पानीपत की तीसरी लड़ाई पर बेस्ड इस फिल्म का लेखा-जोखा डायरेक्टर आशुतोष गोवारिकर ने पेश किया। उन्होंने कहा, "पानीपत की पहली लड़ाई में मेरी कोई दिलचस्पी थी नहीं। दूसरी मैंने 'जोधा-अकबर' में दिखा दी थी। तीसरी के बारे में मैंने बचपन में सुना-पढ़ा था। चूंकि तीसरी जंग हम अहमद शाह अब्दाली से हार गए थे तो शुरूआत में मुझे इसमें इंटरेस्ट नहीं था। फिल्मकार बनने के बाद इस बारे में मेरा इंटरेस्ट बढ़ा।
बकौल गोवारिकर, "मैं सोचता रहा कि पानीपत की तीसरी लड़ाई पर फिल्म कैसे बन सकती है। काफी मनन चिंतन के बाद महसूस हुआ कि इस लड़ाई में शौर्य की बात थी। दुनिया के किसी भी जंग के इतिहास में पहली बार हुआ कि 1000 लोगों की सेना आक्रमणकारी को रोकने के लिए उत्तर की ओर गई थी। दिलचस्प बात यह थी कि 1000 लोगों की वह सेना जंग लड़ने के लिए उत्तर यानी दिल्ली की ओर नहीं जा रही थी। बल्कि उनका लक्ष्य आक्रमणकारी को रोकने का था।"
गोवरिकर आगे कहते हैं, "यमुना के ईद-गिर्द दोनों पक्षों की लुका-छिपी हुई। अंततः पानीपत के मैदान में दोनों की भिड़ंत हुई। वहां हमारी सेना की तादाद बढ़कर 50 हजार हुई। अब्दाली दूसरी तरफ एक लाख की सेना के साथ आया था। इन तथ्यों को लेकर हमारे को प्रोड्यूसर रोहित शेलाटकर भी काफी रोमांचित थे। उनके मन में यह सब काफी सालों से था। इसलिए जब ‘मोहनजो दाड़ो’ के बाद हम मिले तो ‘पानीपत’ की बुनियाद रखी गई।"
यह भी तैयारी की
सारे मेन लीड ने छह महीने तक तलवारबाजी और घुड़सवारी सीखी।
कई कलाकारों ने मुंडन करवाया है।
अर्जुन और कृति सेनन के मराठी डिक्शन के लिए कोच रखे गए।
फिल्म के प्रोड्क्शन डिजाइनर नितिन देसाई ने 18वीं सदी के औजारों को रेप्लीकेट किया। इसमें शमशीर, खंडा और गुप्ती के रेप्लिका बनाए गए।
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