पल्लबी डे पुरकायस्थ पाकिस्तानी सोशल ऐक्टिविस्ट और नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई के जीवन पर यह फिल्म '' बनाई गई है। इसका निर्देशन एच.ई. अमजद खान ने किया है। मलाला पर बनी इस फिल्म का फैंस को बेसब्री से इंतजार था। कहानी: 'गुल मकई' की कहानी पाकिस्तानी नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफ़ज़ई के जीवन और संघर्ष को चित्रित किया है। कहानी की शुरुआत पाकिस्तान की स्वात घाटी से होती है। यहां तालिबानी दशहगर्दों ने अपने हिसाब से सच्चे मुसलमान होने की परिभाषा लोगों के सामने रखी है। स्वात में कब्जा किए ये आतंकी महिलाओं की पढ़ाई के खिलाफ हैं। उन्होंने महिलाओं पर कई तरह की पाबंदियां लगाई हुई हैं। बच्चियां पढ़ने ना जा पाएं इसलिए घाटी के कई स्कूल जला रखे हैं। उधर, मलाला के पिता जियाउद्दीन यूसुफजई, जिनकी भूमिका अतुल कुलकर्णी निभा रहे हैं, एक स्कूल में प्रिंसिपल हैं। यहां लगातार गोलीबारी और बम धमाकों की आवाज ने मलाला (रीम शेख) को परेशान कर रखा है। स्कूल बंद होने से भी वह बेहद परेशान है। मलाला को आतंकियों की दरिंदगी के सपने आते हैं। इसके बाद मलाला और उसके पिता तय करते हैं कि वे इन आतंकियों के खिलाफ आवाज उठाएंगे। इसके बाद दोनों मीडिया के जरिए आतंकियों को साधने की कोशिश करते हैं। इस बीच मलाला लड़कियों की पढ़ाई के लिए संघर्ष शुरू कर दे ही। कहानी आगे बढ़ती है और मलाला के इस प्रयास के बाद उन्हें आतंकियों की तरफ से धमकियां मिलने लगती हैं। पर, मलाला नहीं मानतीं। एक दिन आतंकी उन्हें गोली मार देते हैं। हालांकि मलाला उससे बच जाती हैं और उनके नेक इरादे की जीत होती है। रिव्यू: अहमद खान ने विषय तो काफी अच्छा चुना लेकिन इसके साथ न्याय नहीं कर पाए हैं। जिन परिस्थितियों में मलाला ने लड़ाई लड़ी, उसे पर्दे पर दिखा पाने और उसके जज्बातों को सही से उकेर पाने में निर्देशक पूरी तरह विफल रहे हैं। शायद यही वजह है कि दिव्या दत्ता, अतुल कुलकर्णी जैसे कलाकारों से भी वह बेहतर काम नहीं निकलवा पाए हैं। रीमा शेख भी मलाला के किरदार के साथ न्याय नहीं कर पातीं। उन जगहों पर जहां मलाला का संघर्ष और आतंकियों से उनकी लड़ाई सामने आती है, वहां रीम वह भाव और जज्बात जाहिर करने में विफल दिखती हैं। बैकग्राउंड स्कोर भी अच्छा नहीं है। इस कारण फिल्म और बोझिल लगती है। यह काफी निराशाजनक है कि फिल्म में किसी भी तरह के विवादों का उल्लेख नहीं किया गया है। जबकि मलाला के जीवन से बातें जुड़ी रही हैं और ऐसा लगता है कि कई तथ्य मिसिंग हैं। कुल मिलाकर कहें तो 'गुल मकई' अपने विषय के कारण एक शानदार फिल्म हो सकती थी। लेकिन फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है जो जिसके कारण इसे एक बेहतर फिल्म की सूची में शामिल किया जाए। एक बेहतर फिल्म साधारण फिल्म बनकर रह गई है। क्यों देखें: नोबल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफ़ज़ई के जीवन के बारे में जानना चाहते हैं तो एक बार इसे देख सकते हैं।
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