इंटरवल तक फिल्म धीमी गति से आगे बढ़ती है। किरदारों को स्टैब्लिश करने की कोशिश में फिल्म खिंच जाती है, मगर सेकंड हाफ में जैसे ही स्वंत्रता संग्राम का बिगुल बजता है, फिल्म माहौल को रोमांचक बना देती है।
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